सर्वप्रथम तो मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मैं आरक्षण विरोधी नहीं हूँ, मुझे भी लगता है की पिछड़ो के लिए आरक्षण होना चाहिए, पर सिर्फ़ जाति के हिसाब से नहीं बल्कि आर्थिक रूप से पिछड़ो के लिए भी. आरक्षण हमेशा से विवादित विषय रहा है और अगर आप इस पर कुछ कहते है तो उस पर विवाद होना स्वाभाविक है, पर जहाँ तक मुझे लगता है इसे जान बुझ कर विवादित बनाया गया है ताकि कुछ राजनेताओ की राजनीति धूमिल ना पड़े. इसमे कोई शक नहीं कि जब हमारे देश मे आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी थी तब कुछ जातियों की हालत बदतर थी, उँची जाति के लोग उन्हे छूना भी पाप समझते थे, ऐसी हालत मे उन जातियों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आरक्षण ज़रूरी था. परंतु आज जब हमारे समाज का आधा से ज़्यादा हिस्सा इन सब बातों से काफ़ी उपर उठ चुका है तो फिर आरक्षण की राजनीति क्यों? उस समय जाति धर्म को ना मानने वाले अपवाद की श्रेणी मे आते थे परंतु आज जाति के नाम पर छुआछूत को मानने वाले अपवाद की श्रेणी मे आते हैं ऐसे मे क्या आरक्षण का स्वरूप बदलना उचित नहीं होगा? इसका कोई विरोध नहीं कर सकता की जब बाबा भीम राव अंबेडकर जी ने इस देश का
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